आचारप्रदीप ग्रंथ में यहाँ तक लिखा है कि उपधान तप के बाद ही वीशस्थानक वर्षीतप आदि तप शुद्ध होते हैं।
- विराट उपधान तप, 2019
प्रथम उपधान
इस सूत्र का गुणनिष्पन्न मुख्य नाम श्री पंचमंगल महाश्रुतस्कंध है व आदान (दूसरा) नाम श्री नमस्कार महामंत्र है। नमस्कार यह नम्रता का चिह्न है, भक्ति का निशान है, कृतज्ञता का संकेत है, एवं धर्म का मूल है।
- श्री पंचमंगल महाश्रुतस्कंध (नमस्कार महामंत्र)
द्वितीय उपधान
इस सूत्र का गुणनिष्पन्न मुख्य नाम श्री प्रतिक्रमण श्रुतस्कन्ध है व आदान (दूसरा) नाम श्री इरियावहिया सूत्र है। प्रतिक्रमण- पीछे हटना याने आत्मा अपने स्वभाव (अहिंसादि) से च्युत होकर अन्य हिंसादि व जड पदार्थों में विचरण करने लगती है उससे वापस हटकर स्व-स्वभाव में स्थिर होना प्रतिक्रमण कहलाता है।
- श्री प्रतिक्रमण श्रुतस्कंध (इरियावहिया सूत्र)
तृतीय उपधान
मुख्य नाम श्री शक्रस्तव है, क्योंकि तीर्थंकर भगवान के कल्याण के अवसर पर शक्र=इन्द्र इस सूत्र के द्वारा परमात्मा की स्तुति करते हैं। सामायिक की क्रिया में जिस प्रकार करेमि भंते प्रधान सूत्र है, उसी प्रकार चैत्यवंदन की क्रिया में शक्रस्तव (= नमुत्थुणं) प्रधानसूत्र है।
- श्री शक्रस्तवाध्ययन (नमुत्थुणं सूत्र)
चतुर्थ उपधान
इसमें अरिहंत परमात्मा की प्रतिमाआें को वंदन आदि 6 निमित्त से कायोत्सर्ग करने का बताया गया है। साधक आत्मा खड़े-खड़े पैर जिनमुद्रा में रखकर व हाथ योग मुद्रा में रखकर तथा दृष्टि जिनप्रतिमा पर स्थिर करके स्थापना-जिनदंडक = चैत्यस्तव बोला जाता है।
- श्री चैत्यस्तवाध्यायन अरिहंतचेइयाणं तथा अन्नत्थ सूत्र
पंचम उपधान
इस सूत्र में 24 तीर्थंकर भगवंतों का नामोच्चारण से कीर्तन किया गया है। अतः इसे चतुर्वशिंतिस्तव सूत्र भी कहते हैं। श्री लोगस्स सूत्र भावमंगल स्वरुप है, स्तव आैर स्तुति स्वरुप भावमंगल से जीव ज्ञान-दर्शन-चारित्र बोधि के लाभ को प्राप्त करता है आैर परंपरा से मोक्षसुख का भोक्ता बनता है।
- श्री नामस्तवाध्ययन (श्री लोगस्स सूत्र)
षष्ठ उपधान
अतः इस सूत्र का नाम श्रुतस्तव कहा गया है। अतः इस सूत्र के द्वारा श्रुतधर्म की महिमा बताई गई है। सिद्धाणं-बुद्धाणं सूत्र का शास्त्रीय नाम सिद्धस्तव है।
श्रुतज्ञान का फल सहजावस्था-सिद्धावस्था है, अतः श्रुतस्तव बोलने के पश्चात् सिद्धों को नमस्कार करने के लिये यह सूत्र बोला जाता है, क्योंकि ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः अर्थात् - सम्यग्ज्ञान आैर क्रिया का अंतिम फल सिद्धअवस्था है।
- विराट उपधान तप, 2019
सर्वमंगल
सर्वमंगल- अन्य मंगलों में मांगल्य स्वरुप, समस्त कल्याणों का कारण व सर्वधर्म में श्रेष्ठ ऐसा जैन शासन मिलने पर होना चाहिये कि, अहो! कैसा जैन धर्म...इत्यादि रुप से धन्यता का अनुभव करना व शासन की जयवंतता की घोषणा करनी।
- विराट उपधान तप, 2019
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