जिनशासन में श्री शत्रुंजय तीर्थ की महिमा अनंत है । समस्त तीर्थों में शत्रुंजय तीर्थ मुख्य है, क्योंकि यह तीर्थ पूर्णतया शाश्वत है, इसे किसी ने बनाया नहीं, यह अनादिकाल से है । यह तीर्थ समय-समय पर कालानुसार छोटा-बड़ा होता रहता है । परन्तु इसका सर्वथा नाश कभी भी नहीं हुआ । इस तीर्थ की महिमा बताते हुए महापुरुषों ने कहा है ।
इस तीर्थ पर आने वाले पशु-पक्षी भी तीसरे भव में सिद्ध होते हैं । इसके एक-एक कण-कण ने अनंत जीवों का कल्याण किया है । धर्म के पन्द्रह क्षेत्र हैं । इसमें जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में यह शत्रुंजय तीर्थ है । चौदह (पाँच महाविदेह, पाँच ऐरावत और चार भरत) क्षेत्रों में यह तीर्थ नहीं है ।
हमारा प्रबल पुण्य है कि हमने उस क्षेत्र में जन्म लिया है जहाँ यह तीर्थ है । ऐसा पुण्य दूसरे चौदह क्षेत्रों में जन्म लेने वाले जीवों का नहीं है । इस कारण से सभी श्रावक-श्राविकाओं को वर्ष में एक बार इस तीर्थ की यात्रा अवश्य करनी चाहिए । अभवी और दूरभवी जीव इस तीर्थ के दर्शन कर नहीं सकते हैं । इससे इस तीर्थ के दर्शन आदि करने से जीव भव्य होता है, उसका सम्मान होता है ।
दूसरे तीर्थ की यात्रा नहीं कर सके, परन्तु इस तीर्थ की यात्रा अवश्य करनी चाहिए । आदिनाथ भगवान इस तीर्थ पर पूर्व नव्वाणु बार पधारे थे । हमारी वर्तमान में इतनी शक्ति नहीं की हम पूर्व नव्वाणु बार यात्रा कर सकें। परन्तु श्री ऋषभदेवस्वामी ने पूर्व नव्वाणु बार इस तीर्थ की यात्रा की थी । इसके अनुकरण रूप में नव्वाणु बार यात्रा कर सकते हैं । प्रत्येक श्रावक को जीवन में एक बार गिरिराज की नव्वाणु यात्रा तथा वर्ष में एक बार यात्रा अवश्य करनी चाहिए । सिद्धवड घेटी पाग से नव्वाणु यात्रा क्यों?
नव्वाणु यात्रा घेटी पाग सिद्धवड़ से क्यों….?
घेटी पाग से नव्वाणु क्यों? तब संघवी परिवार इसका उत्तर देते हुए बताते कि यह अति प्राचीन तलहटी आदपुर (घेटीपाग) है जहाँ से पूर्व नव्वाणुवार फागण सुदी 8 को आदपुर से भगवान ऋषभेदव ने घेटी पाग से यात्रा की थी । भगवान आदिनाथ के उपदेश से श्री भरत चक्रवर्ती ने श्री सिद्धाचल महातीर्थ का छ:री पालक संघ निकाला था, तब वे भी आदपुर से चढे थे । पाँचवें आरे में विक्रम संवत् 108 में इस तीर्थ का तेरहवाँ उद्धार कराने वाले जावडशाह ने भी आदपुर से भगवान की प्रतिमा को आगे करके यात्रा की थी । भगवान आदिनाथ की चरण पादुका की आदपुर घेटी तीर्थ पर प्रतिष्ठित है ।
श्री कृष्णजी के पुत्र शांब और प्रद्युम्न साढे आठ करोड़ आत्माओ के साथ फागण शुक्ला 13 को श्री भांडवा डूंगर पर मोक्ष सिधारे थे, इसी के नीचे अनंतानंत आत्माओ की सिद्धभूमि सिद्धवड़ है, जहाँ प्रतिवर्ष पाल लगते हैं और लाखों श्रद्धावंत श्रद्धालुओ के पदचरण पड़ते हैं । यह सिद्धगिरिराज के नैसर्गिक वातावरण की तलहटी है, इसके प्रभाव से यहाँ के अणु-परमाणुओ का प्रभाव है, जिससे यहाँ आने वाले यात्री का दिल शांत-प्रशांत और उपशांत हो जाता है । यहाँ पर रहने वाले को चौबीस ही घंटे दादा की टूंक, भांडवा डूंगर, नवटूंक और सिद्धवड़ के दर्शन होते हैं । इसीलिये हमने इस अति प्राचीन तलहटी से नव्वाणु यात्रा कराने का संकल्प किया है ।