सोरठ मंडण शोभतो, देश सकल सिरदार हो..
जीहाँ विमलाचल गिरि जयो, तीर्थ त्रिभुवन सार हो।। – क्षमाकल्याणजी
सौराष्ट्र देश में विमलाचल नाम का
प्राय: शाश्वत गिरिराज शोभायमान है।
यह तीर्थों का राजा एवं समस्त त्रिभुवन का सार है।
इस गिरिराज की तुलना में जगत में दूसरा कोई नहीं हैं।
भरतक्षेत्र में शाश्वत श्री सिद्धाचलजी महातीर्थ पर भगवान श्री ऋषभदेवजी को केवलज्ञान होने के बाद पूर्व नव्वाणुं बार यात्रा (स्पर्शना) की। 1 पूर्व = 84 लाख , 84 लाख वर्ष = 70560 अरब वर्ष 99 = 69,85,44,0000000000 वर्ष इतनी बार प्रभु यहाँ पधारे, हर बार फागण सुदी 8 को घेटीपाग से चढे। इसलिए आज भी नव्वाणुं यात्रा का अत्यंत महत्त्व है।
जिनेश्वर भगवंत की आज्ञा अनुसार 14 पूर्व का सारभूत श्री नमस्कार महामंत्र एवं आवश्यक क्रिया के सूत्रों के अधिकारी बनने हेतु उपधान तप की आराधना अनिवार्य है।
महानिशीथ-उत्तराध्ययन – दशवैकालिकनिर्युक्ति – व्यवहारसूत्र वगैरह आगमों में भी कहा है कि, श्रीपंचमंगल महाश्रुतस्कंध याने नवकार महामंत्रादि को उपधान की आराधना से प्राप्त करना चाहिये।